अस्टिम्किक् इटिहास ड्वापर युगसे जोरल बा : डा. सर्वहारी

डा. कृष्णराज सर्वहारी

कृष्णराज सर्वहारी गैल महिनाम अस्टिम्की विषयम विद्यावारिधि कर्ल । आपन छुट्ट पहिचान बनासेक्लक् सर्वहारी वरिष्ठ साहित्यकारके रुपमफे चिन्जैठ । दर्जनौ थारु भाषक् पोष्टा िनकारसेक्लक् सर्बहारी दुइ दशकठेसे पत्रकारिता पेशामआबद्ध बाट । हाल अन्नपुर्ण राष्ट्रिय दैनिकके कपि सम्पादकके रुपम कामकर्टि रलक् सर्वहारीसे विद्यावारिधि करबेरिक अनुभव ओ अस्टिम्की विषयम करल बातचिट प्रस्तुट बा ।


विद्यावारिधि प्राप्तकर्लक्म बधाई बा । विद्यावारिधि प्राप्त हुइलपाछ अप्नह कसिन महसुस हुइटि बा ?
विद्यावारिधिमिलल् पाछे महि लावा मेरिक कौनो खासे अनुभुटि नै हो । ८ बर्सक् भरवाबिसाइ पैलकमे हलुक महसुुस हुइलबा । बधाइ खाइट खाइट अघा रख्लुँ । यि उट्टर डेहटसम बधाइले पेट भरट कलेसे कलवा बेरि खाइ नै पर्ना अवस्ठा बा ।


यिहासम पह्राइह पुगैम् कना सोच्ल रलहि कि नाही ?
हिन्दीक विपास कहले बटाँ, सब्से खटरनाक होटा है, हमारे सपनोंका मर जाना । उहेसे जे सपना डेखक् छोरल, उ मुवल बराबर हो । यिहासम आपन पहइपुगैम कहिके छोटिअसे सप्ना डेख्ले रहुँ, सोच्ले रहुँ । जौन आज पुरा हुइलबा । महि अभिन फेन याड बा, ९ कच्छम् पह्रेबेर विड्वान लोगनके महावानि अपन डायरिमे सारेबेर मैं अपन फेन महा बानिबनैले रहुँ । ओ,ओकर आगे डा. ठपके अपन नाउँ लिख्ले रहुँ । उ डेख्के मोर बर्का डाडु ऋषिराज चौधरी बहुट डिन खिझ्वइले रहिट । आज उ खिझ्वाइ यठार्ठमे परिनट हुइलबा ।


अप्न यिहासम पुग्ना जौन अवसर पैलि याकर श्रेय किहिन–किहिन डेठि ?
यि लिस्ट बनैलेसे बहुट लम्माहुइ सेकठ । फिर भि कुछ नाउँ सम्झहि परि । जस्टे कि सल्यानके मोर मैगर संघरिया पूर्ण भण्डारी ‘पंकज’ जिहिसे हम्रे संगे पिएचडि ओरवइलि, उहाँगँरखोड्डा नै लगैटा कलेसे मैं पिएचडि ज्वाइन कर्बे नै कर्टुँ । आब् पिएचडि नै करम कहिके ढिला डेहलमे मोर शोध निर्देशक गुरु प्राडा चूडामणि बन्धु टुहि अपन समाजके लग फेन जसिक फे यि कोर्स करहि परि कहिके डोसर गँरखोड्डा लगैलकमे उहाँ २ जन्हन प्रटि विसेस आभारि बटुँ । मोर सहनिर्देशक डा गोविन्द आचार्य, डा गणेशप्रसाद घिमिरेप्रटि फेन आभारि बटुँ । मोर पिएचडिके कार्यछेट्र दाङके राजपुर गाउँ रहे । उहाँक् गोमादेवी चौधरीक् गाइल अस्टिम्कि गिटके विस्लेसन हो मोर पिएचडि । उहाँमहि समय नै डेटि कलेसे पिएचडि सम्भव नै रहे । ओस्टक सामग्रि संकलनके लग सघैलक माधव चौधरी, सुशील चौधरी, छविलाल कोपिला, अशोक थारु लगायट संघरियन नै सघैटा कलेसे यि लिख्नौटि अच्कच्रे रहट । ओ, कहिहिपर्ना मोर सुखडुखमे साठ डेनामोर गोसिन्या जे महि पह्रक लग बाटाबरन बनैलि, टिनु छाइन्के जे टायप कैके मोर पिएचडिहे आगे बह्रैलाँ । यि सक्हुनमोर पिएचडि कैनाके स्रेय जाइठ । डोसरमजाकामकेलाग इगो ढैना चाहिकना मोर मान्यटा हो । जब कौनो समय संग्गे रिसर्चके कामकर्लक गोपाल दहित पिएचडि ज्वाइन कर्ला । महि लागल दहित पिएचडि करे सेक्ठाँ कलेसे मै का जे नै ? कना इगोले फेन मोर पिएचडिके याट्रा आगे बह्रल रहे । ओहेसे उहाँहे फेन मोर पिएचडि कैनाके स्रेय जाइठ ।

खास कैखहमार थारु समुदायक भैया बाबुहुक्र एसईई पास कैक बल्ल बल्ल क्याम्पस पह्र जैठ तर बिचमा छोर डेठ । आपन पह्राइह निरन्तरता नि डेना कारण का हुइ ना ?
किहु परिस्ठटिले बिचेम पह्राइ छोरना बाढ्याटा आ सेकठ । मने खास कैके कौनो कामबिचेम छोरनाकलक योजनाके अभाव हो कना महि लागठ । बहुट कम अभिभावक हुइहि, जे अपन सन्टान क्याम्पस नापह्रे कना सोंच रलक । मोर लर्कापर्का आगे बह्रिट कनाजौन फेन अभिभावक्के चाहना रहठ । मने हालिकमैम् टे मजा मोबाइल खेलैम्, जा मन लागि टा खैम्, जहाँ मन लागि टहाँ घुमम् कना सामान्य सोंचले फेन युवालोग पह्राइ ढिला डेठाँ । मन्जुरि चलजैठाँ ।
बिचेम पह्राइ छोरना भैयाबाबुन मै काकहक चहठुँ कलेसे अपनेक हाँठेम सिपबाकलेसे मजा जिन्गि जिए सेक्ठि । जौन फेन सिप सिखक् लग पह्राइ चाहठ । काम कर्टि फे पह्रे सेक्जाइठ । ओहेसे मै टे कामले फुर्सड नै पैठुँ कना बहाना नाबनाइ, जट्रा सेकटि, पह्रि ।


अप्नह पह्राइ कलक् कसिन हो जसिन लागठ ?
मैं पह्राइहे एकठो टपस्या मन्ठुँ । सब्के टपस्या पुरा नै हो फेन सेकठ । छोटेम जब कौनो बिसयके बारेम घोक्टि, याड करट करट मिच्छै लागजाए टे मनेम खयालआए, यि पह्राइकना चिज कहिया ओराइ । मने यि पहिलक् खयाल सोंचेबेर अब्बे हाँसि लागठ । विद्यावारिधि औपचारिक पह्राइके अन्टिम बिन्डु हो । मने विद्यावारिधिके बाड जिम्मेवारि झनबह्रल महसुुस हुइलबा । लावालावा विसयमे अढ्ययन अनुसन्ढानके खाका बन्टि बा ।


अप्न अस्टिमकि बिसयम विद्यावारिधिकर्लि । यि बिसयम नम्मा समयसम अनुसन्धान करबेर अस्टिम्किक् इतिहास का पैलि ?
अस्टिम्किक् इटिहास ड्वापर युगसे जोरल हस लागठ । कान्हा भारतके बज्जि गणतन्त्रमे बह्रलाँ, पौह्रलाँ । बज्जि गणतन्त्रमे बोल्जैना बहुट सब्ड अस्टिम्किक् गिटमे पा जाइठ । थारु समुडायमे कान्हा असिन पात्र हुइट, जेकर महिमा अस्टिम्किक् गिट गाके, अस्टिम्किम् चित्रबनाके पुजा कैके, डस्यम सखिया नाचेम गिट गैटि नाचके मना जाइठ । कान्हाबाहेक गिट गाके, चित्रबनाके, नाचके कौनो ऐटिहासिक पात्रहे थारु नै सम्झठाँ । जब मनै भासाके अभावमे एक डोसरसे बोलके अपनभावना साटे नै सेकिट, टब चित्रले अपन बाट बुझाइट । महि लागठ, अस्टिम्किसे पहिले फेन थारु लोग चित्र बनाइट, नै टे सिरिस्टिके बर्नन् हमार चित्रमे कसिक आइट ? संसारमे उ जाट पुरान मानजाइठ, जेकर लोकसाहित्यमे सिरिस्टिके खिस्सा मिलठ् । अस्टिम्किक् गिट लगायट गुर्वावक् जल्मौटिमे फेन सिरिस्टिके खिस्सा रहलओर्से थारु संसारके पुरान आडिवासि हुइट कना प्रमानिट करठ ।


पाछक् समयम अस्टिम्कि मनैनाचलन फे हेरैटि जाइटा । याकर महट्व बह्राइकलागओ यि अस्टिम्कि मनैना चलनह निरन्तरता डिहक लाग का कर पर्ना डेख्ठि ?
अब्बे नेपालमे किलनाहिं, संसार भर पहिचानके खोजि हुइटि बा । ओहेसे खास कैके पस्चिमा थारुलोग यडि अपन पहिचान बँचैना हो कलेसे अस्टिम्कि मनैना चलनहे निरन्टरटा डेनाजरुरि बा । डिडिबाबुन् अग्रासन डेहे जैना चलन यम्ने बा । इहिसे हमार गिटबाँस, पेन्टिंग, नाचबँचे सेकठ् । अस्टिम्किहे महोट्सवके रुपमे मनाइ पर्ना सोंच बनाइ परल । हमार थारु जनप्रटिनिढि लोग, बरघर महटाँवालोग पहिचान बँचैना सोंच नाने परल । जस्टे मिथिला कला नेपालमे किलनाहिं, अब्बे संसार भर लोकप्रिय हुइटि बा । ओस्हक अस्टिम्कि चित्रकलाहे फेन लोकप्रिय बनैना जरुरि बा ।


अन्टम कुछु कहपर्नाबा कि ?
बुह्राइल सुग्गा कठेक पह्रि ? कना कहकुट हटाइ । पह्रके ओरागैल कब्बु ना सोंचि । आपनग्यान बाँटि । अपन व्यक्टिगट उन्नटिके अलावा समाजके उन्नटिक् लग फेन कुछ सोंच बनाइ ।

अग्रासन खबर

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