लेखकहे खै मजुरि ?

ओंरवा लेहेबेर
लौव अग्रासन साप्ताहिक १४ बरसमे प्रवेश करलमे सब्से पैल्ह बहुट बहुट बधाइ बा । प्रकाशक, सम्पादक सन्तोष दहितके सामाजिक सन्जाल ओ इमेलमे अर्जि रहे, बार्षिकोत्सवके अवसरम विशेष अंकके लग लेख छपाइ चहटि कलसे मंसिर २४ गते भिट्टर लिख्क पठैबि । मने इ अर्जिमे एकठो सुचना छुटल रहे, उ हो, लेखके लग पारिश्रमिकके फे बेवस्ठा बा कहिके ।
पत्रकारिता करुँ या लेखन, पारिश्रमिकके मामलामे मैं अपनहे भाग्यमानि मन्ठुँ । २०५१ सालओर गाउँघर साप्ताहिकमे एकठो छोट समाचारके पचास रुप्या मिले । ब्यानर समाचारके अढाइ सय रुप्या सम डिंट । गाउँघर साप्ताहिकमे उहे जबानम् मासिक २ हजार रुप्या सम बुझ जाए । इ मोर लग भारि रकम रहे, काजेकि कलेजके फि मासिक १ सय रुप्या फे नै रहे । यडि लिख्लक पैसा फेन मिलठ कहिके गाउँघर साप्ताहिक डगर नै डेखाइट कलेसे मै सायडे पत्रकारिता या लेखनओर लग्टुँ । इ लेखके सिर्सक बा, लेखकहे खै मजुरि ? ओहेसे इ लेख लौव अग्रासनके भविस्यके चर्चासंगे ओहे सेरोफेरोमे घुमि ।

मिशन टुडेसे सिख्खा लि
कोहलपुरसे निक्रठ, मिशन टुडे दैनिक । परटेक लेखहे इ पत्रिका ५ सय रुप्या लेखकस्व डेहठ । का इ चलन दाङदेउखरके पत्रिका फेन चलाइ नै सेकठ ? एकठो लेख निम्जाइक लग डुइ बैठाइ चाहठ, उ डुनु बैठाइ जोरके ३÷४ घन्टा खर्च हुइठ । आजकल समान्य मजुरि फेन डिनिक हजार रुप्या बा । उ अन्सार ३-४ घन्टा हर्जौनि बापट लेखकहे एक लेखके कम्टिमे ५ सय रुप्या खासे भारि रकम नै हो ।
बार्षिकोत्सवके अवसरम विशेष अंकके लग लेखके संख्या ढेर हुइ सेकठ । मने समान्य अवस्ठामे २(३ ठो लेख छापजाइठ । इ कलक परटेक अंकमे लेखकके लग हजार, पन्द्र सयके ढक्का हो । हजार, पन्द्र सयके ढक्काके व्यवस्ठापन हम्रे करे नैसेक्ठुइ कलेसे हम्रे कसिक व्यवासायिक ? लिखुइया लेखकके घरहिं पत्रिका पुगा डेना फेन बरा सम्मान हो । मने यम्ने फे कन्जुस्याइ बा । डस्या या माघमे लेखक अपन लिख्लक लेखके मजुरि एकमुस्ट पाइ कलेसे ओकर कलमके निब्बा चोख्लार हुइ सेक्हिस । टब खन्गर, मन्गर लेख आइ सेकि । नै टे कामचलाउ घिनापुचि लेखले किल पन्ना भरना हो । इहिले कौनो फेन पत्रिकाके स्तर नै उठि ।

१४ बरसके यात्रा
एकठो कहकुट बा, १२ बरसमे टे खोल्ह्वा फेन घुमठ । राम १४ बरस रहिके बनिवाससे अइलाँ । यकर अर्ठ कौनो फेन यात्रामे १२÷१४ बरसके लगन अपनेमे बरवार हो । लौव अग्रासन साप्ताहिक १४ बरस टेक्के अपन लगनशिलता प्रमानिट कैसेक्ले बा । मने अट्रेले नै पुगि । निरन्टरटाके संगे गुँरबट्टा फेन चाहठ । जस्हँक दाङके नयाँ युगबोधहे अपनहे राप्ती क्षेत्रके ‘कान्तिपुर’के पहिचान बनैले बा, ओस्हँक लौव अग्रासन साप्ताहिक फेन अपनहे परिपक्वके डगरामे लैजाइ पर्ना बा । काजेकि इ पत्रिका आब गोम्हनिया करे लाइक लर्का नैरहिगैल । इ ट १४ बरसके किशोर हो सेकल ।

खै अनलाइन संस्करण ?
इ समय अनलाइनके हो । लौव अग्रासन साप्ताहिक फेन प्रिन्ट संस्करण संगसंगे अनलाइन संस्करणमे जाइक आब ढिलाइ नै करक चाहि । वितरण समस्याके कारण चाहे जौन पत्रिकाके प्रिन्ट संस्करणके बजार खस्कटि बा । ओहेसे मोर टे अर्जि हो कि इ पत्रिका १४ बरसमे प्रवेश करल अवसरमे इ अपन अनलाइन संस्करणके घोसना कै जो डारे ।

थारू समुदायके जिम्मेवारि
धनगढीसे निकरना पहुरा दैनिकके यात्रा अब्बे दुइ दशकमे चौह्रना अवस्ठामे पुगल बा । मने सन्चालकलोगनके अन्सार इ कब बन्द हुइठ, पटा नैहो । लौव अग्रासन साप्ताहिक फेन चलैना साँसट बट्वइठाँ, यकर महटाँवन् । पहुरा दैनिक कहि लौव अग्रासन या लावा डग्गर इ पत्रिका जोगैना समग्र थारू समुदायके जिम्मेवारि हो ।

इ कसिन विडम्वना हो, मिझनि खवइना, बियर पिवइना हमार ठेन चहा जठेक रकम जुहा जाइठ, मने पत्रिका किन्ना, यकर बार्षिक ग्राहक बन्ना, इहि विग्यापन डेके सहयोग कर्ना बाट सुन्टि कि हमार आंग खुज्याइ लागठ । ठपरि एके हाँठेले नै बजठ । आइ बुद्धिजिवि थारूवर्ग, लौवा अग्रासनहस पत्रिकाहे टेवा डि । इ ढेरसे ढेर लेखक, पत्रकार जन्माए । थारू समाजके उत्थानके लग मजा मजा लेख, समाचार छापे । ओकरलग लेखकहुँकन फे कुछ कुछ मजुरि डेहे । फेनसे १४ बरस टेकलमे इहि ढेर ढेर बधाइ ।

अग्रासन खबर

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