मच्छि मर्ना हेल्का, जाल, खोंग्या, डेल्या, शिकार खेल्ना धनुष, लुगा ढर्ना भौकी, भौका व ढक्या । अस्टक बैस्ना बेर्री, खटौली, सुटबेर आराम कर्ना, ढच्या गोन्द्री, धान ढर्ना डेह्री, कुठली व डुल्हादुलही बोक्ने ड्वाला लहरै ढैल बा । ओस्टक सँगसँगै पन्ज्र अङनम थारू रज्वा दंगीशरणके आकृति व घोडाघोडीको मूर्ति । खल्वम मच्छि मर्टिरलक पन्ज्र बनैलक टल्वम परिदृश्य । मघौटा, छोक्रा, हुर्डंग्या, लठ्वा तथा बर्का लगायत नृत्य झल्कना कलाकृति घरक भिट्टाभर ।

यी हो, दाङके दंगीशरण गाउँपालिका-३, चखौरास्थित थारू सांस्कृतिक संग्रहालयके दृश्य । थारू समुदायके कला, संस्कृति व परम्परागत सामग्री संरक्षण कर्ना उद्देश्यले स्थापना कैगिलक् थारु साँस्कृतिक संग्रहालय आब पर्यटकीय गन्तव्य बनल बा । संग्रहालय अवलोकनके लाग हरेक दिन आन्तरिक पर्यटकके घुइँचो लागठ ।
संग्रहालय स्थापना कर्लक संस्था थारू सांस्कृतिक संरक्षण केन्द्रके उपाध्यक्ष शान्ता चौधरी पर्यटकीय गन्तव्य डेख्ख खुशी लग्लक बटोइली । “थारू जातिके संस्कृति हेरैटी गइलक बहुट मन खाए । उहमार आपन कला, संस्कृतिके संरक्षण्के लाग यी केन्द्रके यात्रा शुरू कर्ली,” चौधरी कलि, “गैल बर्ष वर्ष झन्डै एक लाख मनै संग्रहालयके अवलोकन कर्ल । यिहले स्थानीय स्तरम आर्थिक गतिविधि फे बह्रैल बा ।”
संस्कृति झल्किना संग्रहालय
स्कूलके छुट्टीम बर्दियाके शम्भु थारू आपन लर्कापर्नक लेक चखौरा पुग्ल । संग्रहालय डुलैटी ऐतिहासिक सामग्री डेखैटी विविध जानकारी डेटिरललह । “हेरो हमारा बाज्याबज्यैके जीवन कसिन रह !,” संग्रहालयम सजाख ढैल आकृति डेखैटी थारु क्ल । उहासंग अइलक गाउँक लर्कापर्का रमैटी खुब हेर्ल । बिदाके डिन स्कूले लर्कनके घुइँचो लागठ । डुरडुरसे संग्रहालय अवलोकन कर शिक्षक, विद्यार्थी अइना कर्ठ । आम्हिन चाडपर्वमा त विद्यार्थी लगायत आन्तरिक पर्यटक हुकनके भिड लागठ ।
दैनिक झन्डै ३०० ज संग्रहालय अवलोकन कर अइना कर्लक उपाध्यक्ष चौधरी जनैली । उहम आन्तरिकसँग बाह्य पर्यटक फे अइठ । कबुकाल त एकडिनम दुई हजारसे बहुट अइलक तथ्यांक बा । “थारू समुदाय केल निहोख अन्य समुदायक मनै फे अइठ । विशेषगरी देशभरसे विद्यार्थी अइठ उहाँ कलि,” “पाछल्लो समय थारू समुदायके संस्कृति व रहनसहनबारे अध्ययन व अवलोकन कर विदेशी फे अइना कर्ठ ।” तराईके २४ जिल्लाम थारू समुदायके बाहुल्य बसोबास बा । यी जिल्लाम बसोबास कर्ना थारू समुदायके फरक फरक कला, संस्कृति व पहिचान झल्कना सामग्री संग्रहालयम ढैगिल बा । डगौँरा, राना, चितवन्या, डशौरी, माझी व पूर्वेली कैख थारू समुदायका विभिन्न पहिचान बा । सक्कु फरक फरक परम्परागत वेशभूषा, भाँडाकुँडा, रहनसहन, कला र संस्कृति बा । उ सक्कु एक्क ठाउँम अवलोकन कर्ना यी संग्राहलयम बनागिल बा । भात खैना माटी भाँडाकुँडा, ढिक्री, रक्सी बनैना भाँडाकुँडा, गरगहना संग्रहालयम ड्याख सेक्जैठा । अस्टक थारू समुदायके पुर्खासे लगैटी अइलक परम्परागत थारु भेषभुष, लुगा ढर्ना भौका, ढक्या, सुत्ना खटिया, बैस्ना बेरी, खटौली, ढच्या गोन्द्री, धान ढर्ना डेह्री, कुठली, भकारी, भ्वाजम बेल्सना दुलाहादुलही चहुर्ना ड्वाला, चौठ्यार जाइबरे लैजिना ड्वली ढैगिल बा । ओस्टक शिकार खेल्ना धनुष, मच्छि मर्ना हेल्का, जाल, खोंग्या, डेल्या अवलोकन करसेक्जैठा ।
अस्टक थारू समुदाय हरेक वर्ष माघ महीनाम बरघर, मटावा तथा भलमन्साको चयन कर्ठ । यी संस्कार, संस्कृति फे डेखागिल बा । ओस्टक बैठक तथा कचेहरीके झल्को डेना चित्र फे संग्रहालयम डेखागिल बा । पूर्वदेखि पश्चिमसम फैललक डंगौरा, डशौरी, राना, चितवन्या व पूर्वेली थारूके परम्परागत घर फे बनागिल बा संग्रहालयम । “देशभर छिटिक्क बैस्लक थारू संस्कृति, नाचगान, रीतिरिवाज, रहनसहन झल्काना ५०० ठेसे बहुट आकृति बनानगिल बा , उपाध्यक्ष चौधरी कलि ।
करोडके कमाही
संग्रहालय स्थापना २०७० सालम कैगिल रह । पाँच बिघा क्षेत्रम बनागिलक संग्राहलयके संचरना बनैना करिब पाँच बर्ष लागल । २०७५ सालसे सञ्चालनम अइलक संग्रहालय निर्माणम २० करोड रुपैयाँ खर्च हुइलक उपाध्यक्ष चौधरी जनैली । उ मध्ये लुम्बिनी प्रदेश सरकारसे तीन करोड ६५ लाख रुपैयाँ सहयोग पैल बा । संग्रहालयम भवन निर्माण, आकृति बनैना व परम्परागत गरगहना खरीदम खर्च बहुट हुइल बा । सञ्चालनम आइलपाछ आम्दानी फे ओस्टह हुइटी आइल बा । आब वार्षिक ७५ लाख रुपैयाँसम्मके टिकट बिक्री हुइना कर्लक उहाँ जनैली । टिकटके मूल्य १३० रुपैयाँ ट्वाकल बा कलसे ज्येष्ठ नागरिककेलाग ५० प्रतिशत छूट डिहल बा । ओस्टक विद्यार्थीका लाग १०० रुपैयाँ कैगिल बा । संग्रहालयके आम्दानीले कर्मचारीहुकन तलब खुवाइ पुगल बा । संग्रहालयसंग थारू होमस्टे सञ्चालन कैगिल बा । संग्रहालयके अवलोकन कर अइना पर्यटकहुकनके ध्यान ढैक होमस्टे सञ्चालन कैगिलक हो, जहाँ रैथाने थारू परिकार पाजैठा । पर्यटकहुक्र थारू परिकारके स्वाद लेठ ।
“थारू समुदायम सीमित परम्परागत परिकार आब सक्कुजहनके रोजाइम परल बा,” उहाँ कलि “टिकट व रैथाने परिकार बिक्री कैख वार्षिक सरदर एक करोड रुपैयाँ आम्दानी हुइठा ।” यिहिले रोजगारी फे सिर्जना करल बा रेखदेखदेख व्यवस्थापनम ५० जना खटल बाट । आन्तरिक तथा बाह्य पर्यटकके आगमन बह्रलसंग थारू संग्रहालय लुम्बिनी प्रदेशक प्रमुख पर्यटकीय गन्तव्यम बन्नाम गन्गिल बा । एकै थलोम बैस्ख देशभरक थारू कला, संस्कृति, इतिहास तथा जीवनशैली अवलोकन तथा अध्ययन कर सेक्ना हुइलकओर्से प्रमुख पर्यटकीय गन्तव्य बन्लक संस्कृतिविद् डा. गोविन्द आचार्य बटोइल । “दाङ आपन्हे फे पर्यटकीय क्षेत्रका रूपम चिन्जैना जिल्ला हो । विभिन्न धार्मिक तथा सांस्कृतिक सम्पदा बा । उहम थारू सांस्कृतिक संग्रहालय थप्गिल बा,” आचार्य कल ।


