थारु भासा बहसके भौगर – १

यि अठ्वार थारु भासा बहसके भउगर खिटकोर जइटि बा । सर्वहारी काजे जठाभावि थारु भासा बेल्सल कना कहाइ जोर पक्रल ओरसे कुछ कहना मनासिव सम्झटुँ । सरकारि निकाय आदिवासी जनजाति उत्थान राष्ट्रिय प्रतिष्ठानके आयोजनामे २०७३ साउन १ से ३ गटेसम दाङके घोराहीमे ‘डंगौरा थारू भाषाको वर्ण निर्धारण’ निर्ढारन गोस्ठि हुइल रहे । जेम्ने कुछ प्रस्टाविट वर्न आइल ।

१) कुछ प्रस्टाविट वर्न ।

क. स्वर वर्न (अ, अँ, आ, आँ, इ, इँ, उ, उँ, ए, एँ, ओ, ओँ)–१२ (स्वर वर्नमे (ऐ, ऐँ, औ, औँ) वर्न पहिचान हुइ सेक्ना सम्भावना बा । यकर लग भासा जाँच ओ अभ्यास कइना जरुरि बा । यि पुस्टि हुइ कलेसे १६ ठो स्वर वर्न ओ ३० ठो व्यन्जन वर्न सहिट ४६ वर्न हुइना बिल्गठ् ।)

ख. व्यन्जन वर्न (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्, च्, छ्, ज्, झ्, ट्, ठ्, ड्, ढ्, न्, प्, फ्, ब्, भ्, म्, य्, र्, ल्, व्, स्, ह्)–२५

ग. महा प्रान व्यन्जन वर्न (न्ह्, म्ह्, र्ह्, ल्ह्)–४
(थारु व्यन्जन मन्से, न्, म्, र्, ल् के महा प्रान न्ह्, म्ह्, र्ह्, ल्ह् हुइलकमे यिहिहे फेन बेल्सना ।)

घ. कन्ठे स्पर्स व्यन्जन वर्न (अ्)–१ (कन्ठे स्पर्स वर्नके फेन पहिचान हुइलक ओरसे यकर संकेट ( ः, अ्, ?) टिन मेरके रहलेसे फेन हालके लग ‘अ्’ संकेट बेल्सना प्रस्टाव ।)

२) डेवनागरिक (ञ्, ण्, श, ष, क्ष्, त्र्, ज्ञ्, त्, थ्, द् ध्)–११ उच्चारन नइ हुइना हुइलक ओरसे बेल्सना छोर्ना प्रस्टाव ।

३) डंगउरा भासामे नम्मा उच्चारन (डिर्घ) नइ हुइलक ओरसे सक्कु छोट उच्चारन (ह्रस्व) लिख्ना प्रस्टाव ।

४) नाउँ, ठाउँ ओ ठर अपवाडके रुपमे बाहेक जस्टे बोल्जाइठ, ओस्टक चलइना प्रस्टाव ।
मोर संयोजनमे अब्बे गोरखापत्र डैनिकके थारु पन्नामे ओ छविलाल कोपिलाके सम्पाडनमे निकरना लावा डग्गर ट्रेमासिकमे डंगौरा थारु भासाके लेखन इहे सैलि पकरले बा । (सायड इहे महिनम् थारु कल्याणकारिणी सभाके सहकार्यमे आदिवासी जनजाति उत्थान राष्ट्रिय प्रतिष्ठान डंगौरा थारु वर्न पहिचानके पोस्टा प्रकासन करटि बा । जिहिसे ढेर बाट छर्लंग हुइ ।) मानक लेखनके लग यि प्रस्टाविट सैलि हो, जिहि सब्से पहिले हेरेबेर अन्खोहर लागे सेकठ । मने इहे अन्टिम सट्य नइ हो । जे जे थारु भासामे कलम चलाइटि हमार एकठो सैलि रना चाहि कनामे डुइ मट नइ हुइबि ।

थाकस दाङके सभापटि भुवन भाइके कहाइ बा कि ‘नेपाली खस भाषाम फे आम्हिनसम बहस चल्टी बा । थारु भाषाक बहस त भख्खर गोरी ले राखल । म्वार विचारम भाषा संमृद्द हुइलसे उ भाषा वेल्सना मनैया उ मनैयक समाज संमृद्द हुइठा ।’

२०७३ साउन १ से ३ गटेसम दाङके घोराहीमे हुइल डंगौरा थारु वर्न पहिचानके गोस्ठिमे थाकस दाङके टाट्कालिन सभापटि तेजमान चौधरीके उपस्ठिटि रहे । अब्बे गोस्ठिके पोस्टा प्रकासनमे फेन थाकस केन्ड्रके सहकार्य बा । हम्रे एकल प्रयाससे फेन संस्ठागट प्रयासमे विस्वास ढइठि । मोर संयोजनमे गठन हुइल थारु लेखक संघसे आयोजना हुइटि रहल थारु साहिट्य सम्मेलन (२०७३ बैसाख, घोराही), (२०७३ चैट, पटेला, कैलाली), (२०७५ चैट, सैनामैना, रुपन्देही) मे मानक भासा लेखनके सवालमे बहुट बहस हो सेकल । नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, थारु आयोग, थाकस लगायटके आयोजनामे अभिन फेन भासा बहस निरन्टर जरुरि बा ।

सोम डेमनडौरा भाइ साउन ६ गटे थारु भासाके सवालमे नेपालि भासामे फेसबुकमे अपन विचार ढर्ला टे ढेर जन्हनके कमेन्ट आइ भिंरल । निस्चय फेन अपने प्रस्न जउन भासम् डर्बि उट्टर ओहे मेरिक आइ । ओम्ने मोर छोटमोट कमेन्ट रहे, भाइलोग अपन भासक् बारेम अपने भासम् बहस करो । अउरे भासक् सहारा काजे ? सिर्जना सक्टिले अपनहे बल्गर बनाउ । भासक् सुड्ढटक् बाट ढिरे ढिरे मिल्टिजाइ ।

आडरनिय भासाप्रेमिलोग, थारु सुमडायसे किल सम्बड्ढ रलक अपन मनक् बाट फेन हम्रे नेपालि भासामे बेल्सटि, टब कहाँसे हुइ हमार भासक् विकास ? हँसिया कचोट्बो टब बल्ले चोख्लार हुइठ । आउर जन्हनके सब्ड बेल्साइले हमार भासा भोठ्लार हुइ । पलरा रटि रटि तराजुले काजे टौल्ना ? जब तराजुहे लान जाइ कलेसे हमार बोलिके टराजु काजे नइ लिख्ना ? समस्या इहे बा, पहुना सब्डहे जस्का टस लिख्ना कि थारुकरन कइके ? डोसर टुंगो नइ लागटसम सर्वहारी थारुकरन कइके लिख्टि बा । यम्ने ढेर जाने कपार ना बठ्वाइ । सिर्जना करि, कटकर्रि ढिरे ढिरे फटक्के हमार भासामे जरुर एकडिन एकरुपटा पाइ ।

झापासे कन्चनपुरके भारु भासम् एकरुपटा असम्भव बा । पस्चिउहाँमे डंगौरासे राना, कठरिया, डेसौरि अलग बा । पुरुबओर चिटवनिया, मोरंगिया लगायट अलग बा । रेडियो नेपालसे पस्चिउहा ओ पुरुइयामे समाचार प्रसारन हुइटि बा । हम्रे सुरुमे लेखनमे मल्गर रहल डंगौराहे मानक बहस लेके जाइ । राना, कठरिया, डेसौरि भासिलोग अपन मानक बनइबे करहि ।

गोरखापत्रमे अब्बे नेपालि भासाबाहेक ३८ ठो भासम् पन्ना अइटि बा । ओम्ने परटेक भासाभासिलोग अपन मौलिक सैलि अन्सार लिख्टि बटाँ । खस जुम्ली जहाँसे नेपालि भासाके सुरुवाट हुइल, ओकर पन्ना बिल्टाके हेरि, जस्टे बोल्जाइठ ओस्टे बेलस गइल बा । मुल नेपालि सब्डसे ओकर लिखाइ नइ मिलठ । राजवंशी पन्नामे पाटिर स के किल प्रयोग ओ जम्मे लिखाइ ह्रस्व बा याने कि ओइने अपन ठर फेन राजवंसि बेल्सटि बटाँ । मगरलोग जम्मे डिर्घ ओ त थ द ध सब्ड नइ बेलसले हुइट । जस्टे कि ओइने रामबहादुर थापामगरहे रामबहाडूर ठापामगर लिख्टि बटाँ । तामाङलोग पहुना सब्डहे फेन तामाङ बोलिमे जस्टक बोलजाइठ, ओस्टक बेल्सटि बटाँ । ओस्टे मानकके प्रयास डंगौरा थारु भासम् फेन कर्लक हो । नेपालिमे ‘थिए’ उच्चारन हेरके एकथो, ‘हुन त’ हे हेरके ‘हुइना त’ काजे बेल्सना ? कमसेकम ट ठ किल बेल्सना सवालमे एक हुइ सेकब कलेसे फेन बरवार क्रान्टि हुइ । ट टिमि, टपाइ उच्चारन कइके टुहरे नेपालि भासा बोले नइ जन्ठो कहिके हिवावा पइना कि हम्रे अस्टक बोल्ठि टे अस्टक जो लिखब कना डग्रेम लग्ना ? सबसे भारि सवाल कलक इहे हो ।

अग्रासन खबर

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